मंगलवार, 13 मार्च 2012

राजा में मानव और मानव में राजा लोकराजा राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज : भाग १

महात्मा ज्योतिराव फुले से प्रेरणा लेकर ही राजश्री छत्रपति शाहू महाराज
ने पुरानी प्रशासनिक कौंसिल को भंग कर अपने प्रत्यक्ष निरीक्षण मे राज्य
का काम करने लगे । जनता को ब्रामण कर्मचारीयो के शोषण से बचाने के लिए
सबसे पहले यह आदेश जारी किया की आइंदा से सरकारी कर्मचारी गाँवो मे नकदी
पैसे देकर वस्तुए खरीदेँगे और रसिद प्रस्तुत करेंगे । अदालतो के सारे
कर्मचारी तथा न्यायाधीश ब्रामण हुआ करते थे । उनके शोषन से किसानो को को
बचाने के लिए दूसरा आदेश जारी किया की अदालत किसानो के पशुओं की नीलामी
नही करेगी । उन्होने शुद्रो, अतिशुद्रो, मुसलमानो सभी को खुलेआम उनसे
मिलने की इजाजत दी । राज्य मे अकाल तथा प्लेग जैसी आपदाओ के वक्त किसानो
के पशुओ की देखरेख करने की ज़िम्मेवारी राज्य ने स्वयं ली ।
सन 1901 मे छत्रपति शाहु महाराज ने ब्रामणो की सारी सुविधाए समाप्त कर दी
क्योकी ब्रामण मराठो की रस्मो को यह कहकर बिना नहाए ही संपन्न करते थे की
शुद्रो की रस्मो मे ब्रामणो को नहाने की जरूरत नही । ब्रामण नेता तिलक ने
कहा की मराठे नीची जाती के लोग है और अगर धार्मिक रस्मे कर भी लेंगे तो
ब्रामण नही बन जाएँगे । तिलक ने छत्रपति शाहु महाराज को गंभीर परिणाम
भुगतने की धमकी दी । शाहु महाराज उच्च शिक्षित थे । जुन 1902 मे केंब्रिज
विश्वविद्यालय ने उन्हे एल. एल. डी. की डिग्री प्रदान की थी । शाहु
महाराज तिलक जैसे ब्रामणो को उनकी औकाद दिखाने की क्षमता रखते थे ।तिलक
जैसे ब्रामणो की धमकियो से विचलित हुए बिना शाहू महाराज ने शुद्र छात्रो
के लिए छात्रावास बनाकर उसमे उनके रहने ,खाने ,पीने ,किताबो, कपड़ो की
निःशुल्क व्यवस्था की । ब्रामणो के विरोध की धज्जिया उडाकर शाहू महाराज
ने अपने राज्य की नौकरियो मे जाती , जनजाति , पिछड़ो के लिए 50% आरक्षण
उपलब्ध कराया ।
शाहु महाराज ने भास्कर विठोबा जाधव नामक मुम्बई विश्वविद्यालय के होनहार
छात्र को जिसने 1888 की मेट्रीक की बोर्ड परीक्षा मे प्रथम स्थान हासिल
किया था तथा जिसने अपने बीए व एमए की परीक्षा मे भी प्रथम स्थान हासिल
किया था को 1 जुलाई 1895 से राज्य के सहायक सारसुबा पद पर नियुक्त किया ।
तो ब्रामणो ने जाधव को इतने बड़े पद पर नियुक्त करने के निर्णय पर हाय
तौबा मचाई । राज्य के सारे ब्रामणवादी अखबार राजर्षी शाहू महाराज के
निर्णय के खिलाफ आग ऊगलने लगे । कथित समाजसुधारक ब्रामण रानडे तक ने शक
जताया की क्या सचमुच जाधव एक ब्रामण जैसा कुशल है ?
पंडे पुजारी ब्रामणो ने कहा की राज्य मे अपशकुन होने वाले है , अनर्थ
हो जाएगा ; महलो मे दुर्घटनाए होगी ताकी ब्रामण खुद ही भीतराघात कर उसे
दैवीक आपदा के आड़ मे छिपा सके और शाहु महाराज डरकर शुद्रोँ कि नियुक्तिया
रद्द कर दे । उनका निवारण करने के लिए जाप ताप इत्यादि करने का आग्रह
किया लेकिन शाहु महाराज ने ब्रामणो को कह दिया की जाप के बाद भी अगर कोई
दुर्घटनाए होती है तो जाप करने वाले ब्रामणो को जेल की हवा खानी होगी ।
यह सुनते ही जाप का आग्रह करने वाले ब्रामण खिसक गए । सन 1903 मे शाहु
महाराज ने मठ संपत्ति और शंकराचार्य की सभी ताकते और अधिकार वापस लेने का
आदेश जारी किया । का आदेश जारी कर दिया । तिलक और सभी ब्रामणो ने
अपनी पराजय को स्वीकार करते हुए शाहू महाराज के राजकाज मे सहयोग करने का
वादा करके अपनी सहुलतो को वापस बहाल करा लिया । लेकिन ब्रामणो के मन मे
शाहू महाराज से इतनी नफरत हो गई की ब्रामणोने शाहू महाराज की हत्या करने
की कोशिशे की पकड़े गए नंडुम नामक ब्रामण ने अदालत मे बयान दिया की किसी
ने उसे तीस रुपए देकर महाराज के सलाहकार फारस को गोली मारने और महाराज की
लड़की की शादी मे बम फेंकने को कहा था । यह योजना भले ही नाकाम हो गई फिर
भी कोल्हापुर मे कई स्थानो पर बम धमाके किए गए ।सन 1908 मे शाहु महाराज
के रास्ते मे बम रखा गया परंतु बग्गी देर से पहुचने के कारण बम किसी अन्य
टाँगे के नीचे फट गया .............

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