शुक्रवार, 9 मार्च 2012

आखिर कौन है ये शिर्डी के 'साईबाबा' , 'स्वामी समर्थ' और शेँगाव के 'गजानन महाराज' ?

ता 19 जुलै 1994 को संपादक दिपक तिलक ईनका सह्याद्री अंक मे दुसरा नानासाहब पेशवा ही साईबाबा है यह लेख प्रसिद्ध हूआ था लेखक अरुण ताम्हणकर ईनोने रहस्योद्घाटन करते हूए एक अज्ञात साधु का आधार लिया है । ऊनका ये लेख दै मुलनिवासी नायक के पास ऊपलब्ध है । ताम्हणकर ईस लेख मेँ जो कहते है ऊसका सारांष तो यही कहता है सदाशिवराव पेशवा ही स्वामी समर्थ हैतात्या टोपे ये शेगांव के गजानन महाराज हैदुसरा नानासाहब पेशवा ही साईबाबा है । लेखक ताम्हनकर को बाबा के प्रकटिकरण मान्य नही वे कहते है कि ये बाबा लोग अचानक प्रकट हूए कैसे? साधारण आदमी के तरह माँ के पेट से जनम क्यो नही लिया? स्वजाति के बारमे अपनने ऊलटा सिधा बोल दिया ईसके लिए ताम्हणकर ने अपना मुँह बंद किया तो कभी खोला ही नही । ब्रामणो ने स्वामी समर्थ महाराज ईनके कई जगह मठ स्थापण किये अक्कलकोट मंगलवेढा चिपलुण अहमदनगर कल्याण दादर गिरगांव (महाराष्ट्र) ईन प्रमुख संस्थानो (मठ) मे स्वामी का प्रकट दिन हर साल मनाया जाता है । और हर मठो मे खालि सिंहासन है । क्यो कि सिर्फ ब्रामण ही जानते है की स्वामी समर्थ ये पेशवा सदाशिवरावही है । ईस प्रकरण का शोध लेने के लिए प्रत्यक्ष कुछ मठो मेँ भी जाकर देखा है । यह लेख किसीकी भावनाओ को ठेच पहूचाने के लिए नही लिखा गया है । सामान्य जनता को ब्रामणी षडयंत्र समजे, गुप्त बाते समजकर अंधश्रद्धा खात्मा हो यही हेतु है ।पानिपत कि तीसरी लडाईता 13 फरवरी 1760 को पटदुर यहा विश्वासराव पेशवा ईनके साथ सदाशिवराव पेशवा को मिशन पर भेजने का निर्णय लिया गया । ग्वालियर होकर ता 30 मई 1760 को तोफ, रसद, बारुद, घोडदल कुछ औरते लेकर सव्वालाख फौज निकली । अहमदशाह अब्दाली चौकन्ना हो गया वह कुशल सेनापती था ऊपर से पेशवाओ मे चालाकी का अभाव था सदाशिवराव ये कुत्सित जिद्दि स्वभाव के थे (ऐसा ब्रामण कादंबरीकारो ने लिख कर रखा है) ता14 जनवरी 1760 को पानिपत यहा लडाई हूई ।विश्वाराव ईनकि गोलि लगने से म्रुत्यु हो जाति है तो सदाशिवराव बच्चो कि तरह रोने लगते है ईससे सैनिको का मनोबल कम होता है । सदाशिवराव को बिना लडखडाए मैदान खडा रहना आवश्यक था । पर अचानक सदाशिवराव मैदान मे से गायब हो गये(म .यु. भा. ईतिहास पेज क्र 112) । ईतिहास मे पाणिपत कि लडाई का वर्णन सव्वा लाख चुडिया तुट गई ऐसा किया गया है । स्वामी समर्थ अचानक ऊसी समय 1760/61 मंगलवेढा (महाराष्ट्र) को प्रकट हूए स्वामी समर्थ के प्रकटिकरण से पाणिपत कि लडाई का घटनाक्रम जुडता है ।पहले तो मंगलवेढा गांव के लोग ऊन्हे नग्न मतिमंद पागल व्यक्ती समजते थे । कुछ सालो में ही ईस तरुण नग्न मनुष्य का दिगंबर बाबा हो गया ।(गांधिजी भि सव्वालाख पट चालाक थे ऊनोने प्राप्त किया हूआ महात्मापन एकनंबर माडल है ।)स्वामि समर्थ का चरित्रई स 1818 को ब्रामण गोपलबुवा केलकर ने स्वामी कि पहलि बखर(Historical document) लिखि । गोपालबुवा ये स्वामी के बहुतसी गुप्त बाते जानने वाले शिष्य थे । ऊसके बाद ता 09 मई 1975 को रामचंद्र चिंतामण ने बखर का पुन:लेखन किया । अनंतकोटी ब्रम्हांडनायक राजाधिराज स्वामी समर्थ महाराज ईनका जनम कहा हुआ?, वो छोटे के बडे कहा हुए ? ऊनके मातापिता कौन ? ऊनकी जाति कोनसी ? ईनमसे कोई भि बातो का पता नही चलता ऐसा बखर मे लिखा है । स्वामि मंगलवेढा मे 12 साल रहे । गांव के लोग ऊनको मतिमंद मनुष्य समजते थे । बसप्पा तेलि के घर मे रहने वाला यह नग्न व्यक्ती सिंदुर लगाए हूए पत्थरो पर पेशाब करता था ।स्मशान मे कबरो पर संडास करता था ।बसप्पा तेलि के घर के चुल्हे मे संडास करता ये सब स्वामी के लिला थे, वे अवतारी पुरुष थे ऐसा बखर कहती है (अंग्रेजो को कुछ ब्रामण साधु सन्यासीयो के जिवन चरीत्र के सबुत मिले एक जानकारी हमारे पढने मे आयी के एक साधु अपने अनुयाईयो को अपनी संडास खाने देता और ऊसके बाद ही ऊसे अपना चेला बनाता )। परंतु बसप्पा कि पत्नी मात्र अपना पती कहासे ईस मतिमंद पगले के पिछे लग गया ईसके लिए दुखी थी । रोजि रोटी करके पेठ भरनेवाला यह तेलि परिवार बहुत ही गरीब मे जी रहा था । अचानक बसप्पा के परिवार को कहासे तो सोने की खान मील गयी और उनकी गरीबी हमेशा के लिए नष्ट हो गयी । असलियत मे स्वामी को मिलने के लिए मालोजिराव पेशवा मंगलवेढा आते थे ।ऊन्होने स्वामी का महिने का खर्चा बसप्पा को देने की व्यवस्थ लगा रखी थी । स्वामी कभी कभी बसप्पा के परिवारवालो को घर से बाहर निकाल देते और दरवाजे के सामने लाठी लेकर बैठते ।पेशवाओसे महिना अर्थसहाय्य मिलने के बाद गणपत चोलप्पा नाम का नौकर स्वामी की सेवा के लिए ऊपस्थित हो गया ।मै टोली तयार करता हूस्वामी मंगलवेढा मे रहते समय ऊन्हे जबभी पागलपन का झटका आता तो ऊने शांत करने के लिए चेले गांव कि मतिमंद स्त्रि सरस्वती सुनारीन को लाते ।यह मतिमंद स्त्रि लाठी और बगल मेँ फटे कपडो का गठ्ठा लेकर चेलो के पिछे भागती एक चेला कहता 'ज्ञानबा तुकारम' अर्थात दुसरा कहता 'पगली का क्या काम' यह शरारत देख स्वामी जोरजोरसे हसते इतना कि ऊनका पलंग भि हिलता ।12 साल रहने के बाद भी स्थीती नही सुधारी । अक्कलकोट मे चिंतोपंत टोल के यहासे एरंडी की सुखी लकडियो के हतेलिभर तुकडे करते । ऊनमे मिट्टि भरते और फिर पाँच पाँच सात सात तुकडे सैनिक बंदुक जैसे रखते है उसि प्रकार लाईन से रखते । ये ऊपक्रम कई महीने चलता किसिने अगर पुछा तो स्वामी कहते मै टोली (पलटन) तयार करता हू ।ऊसके बाद स्वामी अक्कलकोट मे दुसरा खेल खेलने लगे । अक्कलकोट मे लक्ष्मी नाम कि ऐक तोफ है वहा जाकर तोफ के मुंह मे सिर डाल कर घंटो बैठते ।बुधावारपेठ मे बडबडाते 'अब हिंदु का कुछ रहा नही घोडा गया हाति गया पालखि गया सब कुछ गया' और बिचमेही चिल्लाते सरबत्ती लगाव! यह सब पाणिपत की हार का परिणाम तो नही ? आज तक सदाशिवपेठी लेखक पेशवाओ के गुण गाते नही थके । स्वामी , राऊ ईन कादंबरीयो मे 'तोतया' कहके ईसि पागलपण का वर्णन किया है ।जो पेशवा गिरफ्तार हुवा क्या वो पागल था ? क्या वो पागलपण का नाटक करता था ? ऐसा प्रश्न कादंबरी पढने वालो को नही पडा ।


स्वामी एक जगह कभी बैठते नही थे । दिन मे सात आठ बार वो जगह बदलते ईसिलीए ऊन्हे चंचल भारती भी कहते । अक्कलकोट मे स्वामी के स्वतंत्र आश्रम की व्यवस्था की गयी थी । ईस काम मे राणी साहब बहूत ज्यादा ध्यान देती । ईस प्रकार ब्रामणी खोपडी ने मतिमंद सदाशिवराव का स्वामी समर्थ महाराज किया था ।स्वामी के दर्शन से हमारे तूम्हारे प्रश्न छुटते है , भाकड गाय दुध देती है , स्त्रियो को बच्चे होते है । ऐसा प्रचार अडोस पडोस के गांवो मे किया जाता प्रचार मे ब्रामण स्त्रियो का भी सहभाग रहता । पेशवाओ के दफ्तर के दस्तावेजो के प्रमाण से पता चलता है की ब्रम्हेंद्रस्वामी धावडशिकर ये स्वामी के भेस मे शाहूकार और बद्चलन आचरण के थे । ब्रंम्हेँद्रस्वामी के पास लगभग 20 स्त्रि दासिया थी । जहा जहा स्वामी रहते वहा वहा स्त्रि दासिया जाती । ऊनमेँसे कुछ प्रसिद्ध दासियो के नाम ईस प्रकार से है सजनी, गंगी, सोनी, लक्ष्मी, मानकी, नागी, राधी, गोदी, नथी, कृष्णी, यशोदा, नयनी, आनंदी, ई . ये सभी पेशवाओ कि तरफ से नजराणा था ऐसा जानकारो का कहना है । ईतनाही नही जिनको पुत्रप्राप्ती नही होती थी ऊनको स्वामी के पास लाया जाता और ऊनको स्वामी का विशिष्ट प्रसाद दिया जाता । कुछ रातो को तो स्वामी के मठो से अनैतिक मार्ग से पुत्रप्राप्ती की जाती । ईस सारे खेल पर पेशवाओ के जबरदस्ती कि वजह से परदा पड जाता । यही रित स्वामी समर्थ कि थी ऐसा दस्तावेजो के आधार पर प्रमाणीत किया जा सकता है ।
' मुंगी पैठण की विठाबाई '
स्वामी के दर्शन को भक्त आने लगे आश्रम मे गाय, बकरी, कुत्ते, बिल्लियो की संख्या बढने लगी । केशर कस्तुरी के मिश्रण करके पेशवाओ की तरह सीर पर गंध लगाया जाता स्वामी कभी दाढी रखते कभी निकालते वे लहरी स्वभाव के थे ।स्त्रीयोँ के सत्र मेँ पुरुषो को प्रवेश नही था । स्वामी को कभी कभी साडी चोली पहनाकर बिठाया जाता पर स्वामी अधिकतर लंगोठ पहनकर बैठना पसंद करते । मुंगी पैठणकी विठाबाई ये भि स्वामी की दासी थी । एकबार ऊसने चोलप्पा गणपत को साथ मेँ लेकर पंढरपुर जाने का विचार किया । स्वामी को ये समजने के बाद स्वामी ने सबके सामने उसको पुछा की क्या ? अब तक विठोबा का लिंग पकडने नही गयी ? यह सुनकर वहा ईकठ्ठा हूई सभी औरतो ने शर्म से गर्दन निचे कर दी (स्वामी समर्थ बखर पेज क्र. 46)।
" सुंदराबाई प्रकरण "
दिन ब दीन अक्कलकोट मे भक्तो कि संख्या बढती गयी वैसे संस्थान मे पैसो की आमदनी भी बडी । उसी दौरान सुंदराबाई नाम की तरुण विधवा स्वामी की दासी बन गयी ।वो गणपत चोलप्पा बालप्पा ईनको आदेश देने लगी । तो स्वामी ऊसको कहते " ऐ रांड नौकरणी ये क्या तेरे घर के नौकर है ? "। स्वामी खाना खिलाना नहाना दर्शन के लिए तयार करना ये सभी काम वो करती ।ऊसने स्वामी को ऊठने को कहा तो वो उठते सोने को कहा तो सोते ।ईतनाही नही भक्त दर्शन के वक्त सुंदरा स्वामी को पत्नी कि तरह चिपककर बेठने लगी । संस्थान का अनगिनत पैसा सुंदराबाई हडप करने लगी ।तक्रार करने पर शिष्यो ने ऊसे जेल मे डाल दिया ।
स्वामी अवतार थे पर स्त्रिलंपट थे आखिर मामला पोलीसो तक पहूचना जरुरी था , स्वामी समर्थ के अवतारवाद पर प्रश्नचिन्ह खुद स्वामी ने ही लगाया ।ये अवतार न होकर पाखंड था ये सिद्ध हो चुका है ।
स्वामी की बखर मे 264 प्रकरण है वह सभी देणा शक्य नही । एक बार कर्वे नाम का ब्राम्हण स्वामी को मिलने आया कर्वे ईनकी जवान लडकी बिघड गयी थी । स्वामी ने कहा " होली किजिए " कर्वे को बडा ही धक्का पहूचा तो ऊनोने पुछा आपकी जाती कोनसी ? तो स्वामी ने जवाब दिया " यजुर्वेदी - ब्रामण, गोत्र- कश्यप , रास - मिन " (स्वामी समर्थ बखर पेज क्र 58 ) । ई स 1800 को स्वामी की मृत्यु हो गयी स्वामी तब वे सत्तर साल के थे । ई स 1800 मे चैत्र शुद्ध पुर्णीमा को ऊनका मृत्यु हूआ स्वामी की प्रेतयात्रा को हाती सचाये हुए घोडे तोफदार जरिपटका के पेशवे निषाण बारुदकाम करने वाले ऐसा माहौल था । स्वामी पर भरजरी पोशाख व अलंकार चढाए गये । स्वामि को आखिर मेँ सुगंधी पेटी मे बंद किया गया ऐसा बखर मे लिखा है .


परंतु 14 जनवरी 1761 को मैदान से भागे हुए सदाशिवराव का अंत हुआ था ।स्वामी मंगलवेढा मे रहते समय पेशवाऔ की तरफ से उनको मिलने वाला खर्चा कभी बंद नही किया गया स्वामी ने एक बार मालोजिराव के गाल पर थप्पड लगाई ऊसका कारण यही था कि सदाशिवराव ही स्वामी समर्थ थे । आगे यही प्रयोग तात्या टोपे और नानासाहब पेशवा के साथ किया गया । क्योकी ब्रामण मतिमंद पागल आदमी को स्वामी समर्थ बना सकते है तो सिर से पैरो तक ठिक ठाक दिखने वाले तात्या टोपे को गजानन महाराज और नानासाहब पेशवा को शिर्डी के साईबाबा क्यो नही बना सकते ?
" तात्या टोपे ही है गजानन महाराज "
1818 को भिमा कोरेगाव पेशवाओ की हार हुई ।भारत मे अंग्रेजो कि सत्ता प्रस्थापित हूई । अंग्रेजो के विरुध कयी लड़ाईया हुई उनमेसे 1857 की लड़ाई एक संगठित प्रयास था । परंतु तात्या टोपे, नानासहब पेशवा , लक्ष्मीबाई ईनके नेतृत्व मे किया गया यह प्रयास असफल साबित हुआ । हारने के बाद ये लोग भूमिगत हो गए । नानासाहब पेशवा तात्या टोपे रंगो बापुजी ये लोग साधु पंडीतो का भेस धारण कर भटक रहे थे ('रंगो बापुजी' लेखक-प्रबोधनकार ठाकरे-(शिवसेना के बाल ठाकरे के पिता), पान क्र 270) कई लोगो को फासी दि गयी पर परंतु ऊनके रिश्तेदारो ऊनकी लाश पहचान से ईनकार कर दिया । करीब एक साल पहले कि बात है दैनिक जागरण मे एक व्रुत्त प्रकाशीत हूआ है , तात्या टोपे को फासी दि गई पर वो कोई दुसरा ही था , ऐसी खबर है । लेखक ताम्हणकर का कहना है की तात्या टोपे का वर्णन शेगांव के गजानन महाराज से मिलता जुलता है ,शेगांव मे प्रकट होने वाले गजान महाराज तात्या टोपे ही है ऐसा उनका स्पष्ट कहना है ।साईबाबा और गजानन महाराज एकही वक्त मे होके गए । दोनो को चरित् मे दोनो की कभी मुलाकात होने की खबर नही मिलती ।परंतु जब गजानन महाराज का मृत्यु हुआ तो इधर साईबाबा ' मेरा गया रे ' कहकर दुःख व्यक्त कर रहे थे । असल मे ये लोग संत महापुरुष थे ही नही ब्रामणो ने बनाए हुए बेहरुपीये थे । सुख दुःख के भी आगे निकल चुके संतो से तो ये अपेक्षीत नही की वे अपना सेनापति मरने का दुःख जाहिर करे पर इसका दुःख नानासाहब को हुआ । ' सांईबाबा मतलब दुसरा नानासाहब पेशवा ' !
साई यह नाम इसा से लिया गया है ।
केसरी प्रकाशन ने प्रकाशित किया गया ' पेशवा घराणो का ईतिहास ' ईस किताब मे लेखक प्र ग ओक कहते है दुसरे बाजिराव ने 7 जुन 1827 को गोविंद माधवराव भट ईस लडके को गोद लिया । उसकी जनतारिख 6 दिसंबर 1824 ऐसी है । मतलब 1857 के युद्ध मे दुसरे नानासाह पेशवा 32 साल के थे ।
नानासाहब पेशवा को संस्कृत , पर्शियन(ईराणी) , ऊर्दू ईन भाषाओ का ज्ञान था । नानासाहब पेशवा हमेशा किनरवापी कुर्ता डालते । शिर्डी के साईबाबा का द्वारकामाई चावडी के पास का फोटो सबके परिचय की है ।
28 फरवरी 1856 को अंग्रेजो ने नानासाहब पेशवा को पकडने के लिए इनाम जाहिर किया था । रंग गेहुआ , बडी आंखे , छह फिट दो इंच लंबाई, सिधा नाक, साथ मे तुटे कान का नोकर ऐसा भेस जाहिर किया गया था । नानासाहब समझ कर दूसरे किसीको ही फासी दी गई थी । असल मे नानासाहब कबके फरार हो चुके थे । साई यह गांव मै जहा पे पढता हू ऊधर रायगड जिले (महाराष्ट्र) के चिरनेर के पास है । परंतु साई यह नाम ब्रामणो ने येशु ख्रिस्त के ईसा का उलटा लिया है ।
ब्रामण मतिमंद पागल सदाशिवराव को स्वामी बना सकते है तो नानासाहब पेशवा को शिर्डी का साईबाबा भि बना सकते है ।ईन स्वामी बाबा महाराजाओ को लोगो को गाली देने कि आदत थी । और स्वामी समर्थ और साईबाबा ईनकी काठी एक जैसी ही है । और काठि पर हात रखने का तरीका भी एक जैसा है यह विशेष।
ओर दुसरी विशेषता तो यह है की इनको कई तरह की गंदी आदते भी थी उनमे से एक गजानन महाराज की गांजा पिते हूए एक तसविर बहुत लोकप्रिय है ।अय्याशीयो से ही गांजा पीने की आदत लगती है ।
मुलनिवासी बहूजनो के संत मोह, माया, संपत्ती से दुर रहकर लोगो को जिने का मार्ग दिखाते । ' व्रत काया कल्पो से पुत्र होती, तो क्यो करने लागे पती ' । यह भावना विज्ञानवादी विचारधारा का ऊदाहरण है । चिलिमधारी गांजाधारी फोटो का मानसशास्त्रिय परिणाम छोटे बच्चो तथा समाज पर क्या होता होगा ?।वर्तमान मे जो काला पैसा कमाते है , भाईगिरी , चोरी खुन करके पैसा कमाते है , बडे बडे गुंडो के आश्रय से राजनिती मे आते है । 'चरीत्रहीन काम करके मै ही चरीत्रवान ' ईसलिए दर्शन के लिए बिना किसी लाईन मे लगके दर्शन के लिए ज्यादा का पैसा देकर शार्टकट दर्शन लेते है । अमिताभ बच्चन का दर्शन घोटाला तो बडा ही फेमस है । बाल ठाकरे ने भि साईबाबा को क्या क्या नही दिया था यह प्रकरण भि बडा ही फेमस हूआ था । काँग्रेस, राष्ट्रवादी , बिजेपी के नेताओ ने पुंजिपतियो ने कितना पैसा ईन मंदिरो को दिया ईसका कोई हिसाब है ? । यह राजस्व प्राप्त करने का नया तरीका है क्या ? भारत को आजादी मिलने के बाद संस्थानिको के संस्थान विलीन किए गए बदले मे उनको तनख्वा देने कि व्यवस्था कि गई कुछ दिनो बाद भारत सरकार ने तनख्वा बंद किया । ऊसके बाद संस्थाने राजापद इतिहासगत हो गई । परंतु आजादी के बाद अस्तित्व बनाए रखने वाली ब्रामणी व्यवस्था की संस्थाने गब्बर होती जा रही है । इन संस्थानो के आश्रय से अंदर बैठने वाले बुवा , बापु , बाप्या , स्वामी, दादा, नाना-महाराज, सद्गुरू इनकी कृपा से हमारे तुम्हारे प्रश्न चुटकी बजाते ही छुट जाएंगे ऐसा प्रचार यह ब्रामण और ऊनके दलाल हमेशा करते रहते है । धर्म , भक्ती, सेवा, श्रद्धा, अध्यात्म, ब्रामणी कर्मकांड ईनको आकर्षित होकर खुद ही ब्रामणी संस्थानो मे प्रवेश करते हैँ । नसिब पर विश्वास रखकर जिने लगते है । दैववादी बन जाते है । ब्रामणी कर्मकांडो के जाल मे फस चुके लोगो का कर्मवाद पर से विश्र्वास कम होते जाता है ओर वो ब्रामणो का मानसिक गुलाम बन जाता है। ईनमे अशिक्षित शिक्षितो के साथ अमिर गरीब सभि का जमाव रहता है ।
विशेषता तो यह है की मानसिक विकलांग लोग खुद को ब्रामणी व्यवस्था के गुलाम कभी नही समझते । ईसकी कल्पना तक नही करते ।


गुलामी की बेडीया तोडने का काम तो दुर ही ।ईन संस्थानो मे श्रद्धा के नाम पर लोगो से पैसा निकालने की योजनाए बनाई जाती है ।काकड आरती, महाआरती ,पालखी , ऊत्सव ,अभिषेक ,दर्शन ऊत्सव ,बेडिया, व्रत, मृतआत्माओ को खुश करना, चुटकी बजाते अमिर होना ,गुप्तधन, दिर्घायुष्य माला ,होम हवन ईन सब के द्वारा वो आपके जेब मे हात डालते हैं। इसतरह करोड़ो रुपयो का निधि रोज के रोज संस्थानो की दानपेटीयो मे झरने समान गिरते रहेगा ऐसी ब्रामणी षडयंत्रकारी योजना है । भारत के वित्तिय बजट से दस गुणा ज्यादा रकम मंदिरो मे हर साल जमा होती है, वो कहा जाती है । जहा पे भुखमरी से लोग मर जाते है , किसान आत्महत्या करते है , वही पे होम हवन करके लाखो रुपयो का दूध , दही , घी ,अनाज जलाया जाता है । यही इस देश की दुविधा है ।
जिन पेशवा ब्रामणो ने छत्रपति शिवाजी महाराज को जहर देकर मारा वही ब्रामण पेशवा अर्थात साईबाबा, गजानन महाराज, स्वामी समर्थ हमारे प्रेरणास्त्रोत कैसे हो सकते है ? जिन पेशवा ब्रामणो ने अछुतो के गले मे मटकी बाँधकर उनका थुकना तक पाप होता है ऐसा माना , उनके पैरो के निशान भी जमीन पर नही दिखने चाहिए इसके लिए उनके कमर को झाडु लगाया , ऐसे लोगो को हम अपना प्रेरणास्त्रोत कैसे मान सकते है ? फुले , शाहू , आंबेडकर ईनोने जो 108 साल जो क्रांतीकारी संघर्ष किया , जिससे गले की मटकी दूर होके उसके जगह टाई आ गई । शरीर पर कोट, सुट अच्छे कपड़े आ गए । पैरो मे जूते आ गए । जिन ब्रामणो ने ओबिसी को शुद्र कहा आज लोकतंत्र मे वही ब्रामण राजा बने हुए है ।
मुलनिवासी बहूजनो ने अपने महापुरूषो को प्रेरणास्थान मानना चाहीए । अपने बाप को ही बाप मानना चाहीए ।
पेशवा ये विदेशी युरेशियन ब्रामण है । वे अंग्रेजो से झगडते वक्त हार गए और भाग गए अंग्रेज पकड़ेंगे इस डर से ईन लोगो ने दूसरा मार्ग अपनाया वो मतलब साधु , स्वामी बनना । शिर्डी के साईबाबा - दुसरा नानासाहब पेशवा , स्वामी समर्थ -सदाशिवराव पेशवा , गजानन महाराज - तात्या टोपे ये सभी पेशवा ब्रामण है यह इतिहास से सिद्ध हो चुका है ।
इन संस्थानो के मेडिकल इंजिनिअरींग काँलेजेस है । यहा पे ब्रामणो के बच्चे पढते है और बाद पास होने के बाद इन विध्यार्थीयो से दो साल के लिए पुर्णकालिन कार्यकर्ता बनाकर काम करवाया जाता है ।आगे यही विध्यार्थी ब्रामणी व्यवस्था के कट्टर समर्थक कार्यकर्ता बनकर ब्रामणी व्यवस्था का मेंटेनन्स करने का काम करते है ।

यह लेख मराठी दै मुलनिवासी नायक मे आया हूआ है ।पाठको कि निरंतर मांग के कारण ईसे बार बार प्रकाशित किया गया ।दै मुलनिवासी नायक ने ईन तिनो ब्रामणो को नंगा किया तबसे कुछ महाराष्ट्र के ब्रामणी चँनलो ने अनैतिक टिवी सिरिअल्स शुरु कीये । महाराष्ट्र मेँ तो यह लेख गांव गांव मे पहूच चुका है । ईसिलिए पुरे देशभर के मुलनिवासी साथीयो को जाग्रत करने के लिए ईसका हिंदी अनुवाद किया हू । ईसको ध्यान मे रखते हूए सभि मुलनिवासी साथियो से विनती है की ईसे ज्यादा से ज्यादा मुलनिवासी साथियो के साथ शेअर करे और हो सके तो ईसकी प्रिँट निकाल कर लोगो मे ईसकी प्रतिया बाट सकते है । जल्द ही ईस पर मुलनिवासी पब्लिकेशन ट्रस्ट कि तरफ से एक शोध पुर्ण ग्रंथ प्रकाशित होने वाला है । जय गुरु रविदासजी, जय जिजाऊ , जय शिवराय, जय भिम , जय मुलनिवासी !
लेखक ; प्रो . विलास खरात ,
अनुवाद ; कुलदीप वासनिक

10 टिप्‍पणियां:

  1. Dhanyavaad Kharat sahab aur Wasnik sahab.

    Aaj bhi 85% buddist aisi pooja, archa aur andhashradha me fase hai. Jarurat hai achhe mansik swast ki, jo Istrah ke likhan se BAHUJAN SAMAJ ko Prapt ho sakti hai

    THYANK U AGAIN.

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  2. THYANK U,
    Dhanyavaad Kharat sahab aur Wasnik sahab.

    My blog santosh-kale.blogspot.com

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  3. कुलदीप जी,आपके लेख पढ़कर कोई मूर्ख से मूर्ख व्यक्कि भी बता सकता है कि आप पूर्वाग्रहोँ से कितने ग्रसित हैँ।आपके ये विचार अनर्गल प्रलाप के अतिरिक्त और कुछ नहीँ। हमारा धर्म तथा हमारी संस्कृति पर हमेँ अभिमान है परन्तु आप जैसे ही कुछ संकीर्ण विचारधारा के व्यक्तियोँ ने हमारे सनातन धर्म को बदनाम कर रखा है।मानता हूँ कि कुछ ब्राम्हणोँ ने अपने फायदे के लिए लोगोँ की धार्मिक आस्थाओँ और भावनाओँ का दुरूपयोग किया परन्तु सभी को एक ही तराजू मेँ तौलना ठीक नहीँ। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वे आपको सद्बुद्धि देँ तथा आपके अपनेँ पूर्वाग्रहोँ व कुत्सित विचारधाराओँ से मुक्त करेँ। जया भवानी, जय श्री राम, जय भारत।

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    1. aapne sahi likha bilkul hum apke saat he - jai mulnivasi

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    2. The sanatan dharm...means arya dharma...means brahman dharma...to ask some brahmans about their gods and goddesses...why so recently dalit/untouchables were not allow to admission in temple throughout India? What did Ram done for dalits and women? Whole Ramayan is written on women issues based...and nothing for women in Ramayan.

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  4. एक मूर्खता पूर्ण लेख जो झूठे कुतर्क का साथ दे रहा है . लेखक को इस से क्या मिल जाएगा समझ नहीं आता . ए लेख नहीं किसी काल्पनिक ड्रामा का स्क्रिप्ट है जिस पर सिर्फ हंसी आ सकती है . मैं आपके इस बकवास का जवाब बहुत अच्छी तरह दे सकता हू मगर आपके पूर्वाग्रह का इलाज मेरे पास नहीं है . कुछ अच्छा काम कर लो टाइम पास के और भी तरीके है .

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    1. Agr kuldeep ji ne kuch bhi Sai Baba ke bare me likha he...to uska kuch pramanik sraut to diya he...Kya Peshva hi baba bne he...esa koi zaruri to nahi he...ki satya hi ho...kul milake hume..aur babao ki zarurat nahi he...jb yahi babo log...jeete-ji hi bhagawan ki tarah pujniye bna diya jata he...agr kisi baba ko sunne walo ki koi kmi nhi he to...wo baba bhi utna hi sachcha h pujniye bna rahat he...

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  5. Bahut hi accha artical hain. Main artical se sahmat hi nahi balki mujhe khushi hain ki anewale dino mein yah desh bhat brahmano k adharm se mukt ho jayega. Pakhandione is bharat desh k logo ko bhagwan ka jhansha dekar hajaro salo se lula langda banaya hain. Aise ishwar aur bhagwan par main mutna bhi pasand nahi karta. Bhagwan insan ne nirman kiye hain, na ki bhagwan ne insan ko. Dharm insan k liye hota hain na ki insan dharm k liye. Dharm aur ishwar ka dur dur tak koi rishta nahi, yah bat ham sabne samajni chahiye. Hindu yah rajnitik shabd hain yah koi dharm nahi asli dharm to brahman dharm hain. Jise hindu lable lagaya gaya hain. Aise dharm se hajaro salo se brahmano ka hi fayda hote aa raha hain. Bahujano ka nahi. Bahujan kisan, dalit aaj bhi atmahatya aur savarno k julm k shikar ho rahe hain. Na hindu dharm is desh ka hain na uske bhagwan. Bahujano ko brahmanone aaj tak chutiya banaya hain. Yah bat jeb sare bahujan jan jayege vo din brahman aur unke mandiro ka kardan kal hoga aur is desh ka purana dharm jo bauddha dharm tha. Vah samatawadi dharm sahi maine mein sthapit hoga...prabuddh ho bharat.

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